Indian Council Act 1892 and Morley Minto Reforms 1909- 1857 की क्रांति के बाद भारतीयों में राष्ट्रवाद की भावना व राजनैतिक चेतना का विकास हुआ जिसके परिणाम स्वरुप अंग्रेजी प्रशासन में भारतीयों को स्थान देने का दबाव बढ़ने लगा। 1858 के भारत सरकार अधिनियम और 1861 के भारत परिषद अधिनियम में इसकी कोशिश की गई थी किन्तु भारतीय इससे संतुष्ट नही थे, जिसका परिणाम था सन 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना। इसने संवैधानिक सुधारों की माँग की, जिसके फलस्वरूप ब्रिटिश संसद ने 1892 में भारत परिषद अधिनियम पास किया।
याद रखें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना अंग्रेजों ने Safety Valve Policy (सेफ्टी वाल्व पालिसी) के तहत अंग्रेजों एवं भारतीयों के बीच बातचीत में मध्यस्थता करने हेतु की थी। इसकी स्थापना A. O. Hume द्वारा 28 दिसम्बर सन 1885 में बम्बई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में की गई थी। इसके सम्बन्ध में हम इतिहास में विस्तृत रूप से पढ़ेंगे।
इस चैप्टर में आप पढ़ेंगे
भारत परिषद अधिनियम 1892
मूलतः यह अधिनियम भारतीयों की मांगों को पूर्ण करने के लिए लायी गई थी, इस दौरान राष्ट्रवादियों ने नारा दिया था “प्रतिनिधित्व नहीं तो कर नही”
भारत परिषद अधिनियम 1892 के प्रमुख प्रावधान
- गवर्नर जनरल के कार्यकारिणी में सदस्यों की संख्या को बढाकर न्यूनतम 10 व अधिकतम 15 कर दी गयी।
- इन सदस्यों के मनोनयन पद्धति का समापन करके अप्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था कर दी गयी।
- बजट पर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया किन्तु पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार नहीं दिया गया।
भारत परिषद अधिनियम 1892 के प्रमुख प्रभाव
भारत परिषद अधिनियम 1892 का एक प्रभाव यह देखने को मिला की इस Act के द्वारा पहली बार भारत में अप्रत्यक्ष निर्वाचन या चुनाव प्रक्रिया की शुरुवात की गई।
भारत परिषद अधिनियम 1909 (मार्ले मिन्टो सुधार या सांप्रदायिक सुधार)
तत्कालीन भारत सचिव मार्ले एवं वायसराय लार्ड मिन्टो के नाम इस Act को मार्ले मिन्टो सुधार या सांप्रदायिक सुधार अधिनियम 1909 के नाम से भी जाना जाता है। हालाँकि 1892 के भारत परिषद अधिनियम में गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद में सदस्यों के मनोनयन पद्धति का समापन करके अप्रत्यक्ष निर्वाचन की व्यवस्था कर दी गयी किन्तु यह उन भारतीयों को शांत करने में असफल रहा जो अब अपने अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक हो चुके थे। इस Act या सुधार को लाने के पीछे अंग्रेजों का एक उद्देश्य सांप्रदायिक निर्वाचन प्रारंभ कर हिन्दू व मुस्लिमों के बीच मतभेद पैदा कर उनकी एकता को ख़त्म करना भी था।
भारत परिषद अधिनियम 1909 के प्रमुख प्रावधान
- भारतीयों को बजट पर प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया किन्तु गवर्नर जनरल उत्तर देने के लिए बाध्य नही थे।
- गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में पहली बार एक भारतीय सदस्य सत्येन्द्र प्रसाद सिन्हा को शामिल किया गया।
- मुस्लिमों को पृथक निर्वाचन का अधिकार दिया गया अर्थात सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति की शुरुवात हुई।
- केन्द्रीय काउंसिल में विधि सदस्यों की संख्या बढाकर 60 कर दी गई जिनमे 27 मनोनीत व 33 निर्वाचित होते थे।
- प्रांतीय विधायिकाओं में भी सदस्यों की संख्या बढाई गई और निर्वाचित सदस्यों का बहुमत स्थापित किया गया।
भारत परिषद अधिनियम 1909 के प्रमुख प्रभाव
1909 के भारत परिषद् अधिनियम का प्रमुख प्रभाव यह देखने को मिला की भारत में पहली बार धर्म के आधार पर या सांप्रदायिक निर्वाचन (Communal Election) की शुरुवात हुई।
स्मरणीय तथ्य –
- परीक्षा की दृष्टीकोण से दोनों ही एक्ट के प्रावधानों या Features को याद रखने के लिए आप अपने दिमाग में यह Mind-Map बनाइये की उपरोक्त दोनों अधिनियम भारत में राजनैतिक सुधारों एवं भारतीयों के मांगों पूरा करने के लिए लाये गए थे।
- 1892 के Act में जहाँ अप्रत्यक्ष निर्वाचन की शुरुवात की गई तो वहीँ 1909 के Act में सांप्रदायिक निर्वाचन की शुरुवात की गई।
आने वाले Chapter में हम 1919 का अधिनियम एवं 1935 के अधिनियम में किये गए द्वैत शासन के प्रावधान का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे यदि आपको यह Chapter पसंद आया हो तो इसे Share एवं Canteen Class को Subscribe अवश्य करें।
Image Credit – Wikimedia
Maza aa gya pad ke.
Thank u canteen classes
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद, Visit करते रहें.
Thank you so much sir … Great work..
Welcome and thanks for commenting Neetu.
Thnxx sir this is very usefull any students *****
Hello sir